आज के समय में TATA को कौन नहीं जानता है बल्कि पूरे भारत में शायद ही ऐसा कोई इंसान हो जिसने जिंदगी में कभी भी TATA का एक भी प्रॉडक्ट इस्तेमाल ना किया हो। देश के नमक से लेकर देश की एयर लाइन्स तक, स्टील से लेकर कार तक, होटेल से लेकर चाय तक, TATA सब कुछ बनाता है।वैसे तो TATA कोई कंपनी नहीं है।
बल्कि ये कई कंपनयो से बना एक ग्रुप है जो करोड़ों लोगों को रोजगार देता है और ये देश के वर्तमान और भविष्य दोनों के बारे में सोचते है। रतन टाटा जोकि TATA GROUP के मालिक है वे देश के बाकी बिजनेसमैन अंबानी और अडानी से बिल्कुल अलग है। वो बिज़नेस मैन नहीं बल्कि इंडस्ट्रियलिस्ट है। वो इंडस्ट्रियलिस्ट जिनके लिए पूरे देश के दिल में इज्जत है और ऐसा नहीं है की ये इज्जत सिर्फ रतन टाटा के लिए है, बल्कि J.R.D. TATA के टाइम से ही टाटा ऐसे काम करता रहा है, जिससे उसे आज का ये मुकाम मिला है।
तो चलिए आज जानते हैं टाटा की पूरी कहानी।
टाटा की शुरुआत जमशेद जी टाटा ने की थी, जिनका जन्म 1839 में एक पारसी परिवार में हुआ था। बात है 19 वीं सदी के अंत की। भारत के कारोबारी जमशेदजी टाटा एक बार मुंबई के सबसे महंगे होटेल में गए, लेकिन उनके रंग के चलते उन्हें होटेल से बाहर जाने को कहा गया। जिससे जमशेद जी टाटा को काफी बुरा लगा और उन्होंने उसी वक्त तय किया कि इधर भारतीयों के लिए इससे भी बेहतर होटेल बनाएंगे और 1903 मुंबई के समुद्र तट पर ताजमहल पैलेस होटल तैयार किया गया।
ये मुंबई की उस समय की पहली ऐसी इमारत थी जिसमें बिजली थी, अमेरिकी पंखे लगे थे, जर्मन लिफ्ट मौजूद थी और रतन टाटा के साथ ऐसा ही कुछ फोर्ड ने भी किया था। वो भी आपको आगे बताएंगे। दोस्तों टाटा के पूर्वज पारसी पुजारी थे लेकिन जमशेदजी ने कपड़े, चाय, तांबा, पीतल और यहाँ तक अफीम के धंधे में भी अपनी किस्मत आजमाई, क्योंकि तब अफीम का धंधा कानूनी तौर पर मान्य था। उन्होंने इस दौरान काफी यात्राएं की।
अरे नई खोजों को लेकर वो बहुत ज्यादा उत्साहित रहते थे। ब्रिटेन की एक यात्रा के दौरान उन्हें लंका शायर कॉटन मील की क्षमता का अंदाजा हुआ। साथ में ये एहसास भी हुआ कि भारत अपने शासक देश ब्रिटेन को इस मामले में चुनौती दे सकता है और फिर उन्होंने सन 1877 में भारत की पहली कपड़ा मिल खोली थी। EMPRESS Mill का उद्घाटन उसी दिन हुआ। जिसदिन क्यूवीन विक्टोरिया भारत की महारानी बनीं थी ,
जमशेदजी के पास है। भारत के लिये स्वदेशी सोच का सपना था दोस्तों यही स्वदेशी
यानी की अपने देश में निर्मित हुइ चीज़ो के प्रति आग्रह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का अहम विचार था। जी हाँ, जिसे स्वदेशी सोच को आज हम बढ़ावा दे रहे हैं, उसकी नींव टाटा ने हीं रखी थी। उन्होंने एक बार कहा था, “कोई भी देश और समाज अपने कमजोर और असहाय लोगों की मदद से उतना आगे नहीं बढ़ता जितना वो अपने बेहतरीन और सबसे प्रतिभाशाली लोगों को आगे बढ़ाने से बढ़ता है” उनका सबसे बड़ा सपना स्टील प्लांट बनाने का था, लेकिन इसके पूरा होने से पहले ही उनका निधन हो गया।
जिसके बाद उनके बेटे दोराब जी टाटा ने इस चुनौती को सँभाला और सन 1907 में टाटा स्टील ने उत्पादन शुरू कर दिया। भारत स्टील प्लांट बनाने वाला एशिया का पहला देश बना था। जमशेदपुर शहर, जमशेदजी ने एक औद्योगिक शहर बनाने के लिए भी निर्देश दिए थे। उन्होंने दोराब को लिखे एक लेटर में कहा था कि इस शहर की सड़कें लंबी होनी चाहिए और उसके दोनों तरफ छायादार पेड़ लगाए जाएं। बगीचों के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए। फुटबॉल, हॉकी के मैदान के अलावा पार्क के लिए भी जगह होनी चाहिए और दोस्तों उनके इन्हीं निर्देशों का नतीजा बना। जमशेदपुर शहर।
TATA हमेशा से ही प्रॉफिट से ऊपर अपने कर्मचारियों को रखता था जहां दुनिया भर के दूसरे देशों में भी जब अपने कर्मचारियों के लिए भले ही योजनाएं ना के बराबर होती थी, तब भी टाटा ने श्रमिकों के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू की। सन 1877 में पेंशन की व्यवस्था, 1912 में प्रतिदिन 8 घंटे की शिप और संन 1921 से मातृत्व सुविधाएं मुहैया करवानी शुरू की। जमशेदजी का यकीन ये था कि कारोबार तभी आगे बढ़ेगा, जब उसमें समाज के बड़े तबके की हिस्सेदारी होगी। खुद नहीं देश पहले
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उन्होंने बैंगलोर में “इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस” की स्थापना की ताकि देश के विकास में योगदान देने के लिए इंजीनियर और वैज्ञानिक तैयार हो सके। जमशेदजी और उनके बेटों ने अपने पैसों को भी चैरिटेबल ट्रस्ट के हाथों में सौंप दिया। जिसकी TATA की होल्डिंग कंपनी, TATA SANS में 66 फीसदी की हिस्सेदारी है। परिवार के पास अभी भी तीन फीसदी की ही शेर है और बाकी अलग अलग कंपनियों और शेयर धारकों के पास मौजूद है। कई एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि इससे ट्रस्ट की विश्वसनीयता बढ़ती है। हर कोई यह जानता है की कंपनी के ज्यादातर शेयर ट्रस्ट के पास हैं मौजूद हैं।
दोस्तों TATA के कारोबार को संवारने वालों में JRD यानी की जहांगीर टाटा का अहम योगदान रहा है। वे 1938 में टाटा समूह के चेयरमैन बने। तब उनकी उम्र महज 34 साल थी और वे आदि शताब्दी तक कंपनी के मुखिया बने रहे। जीआरडी उद्योगपति नहीं बनना चाहते थे। उनका सपना पायलट बनने का था। इसके चलते ही वे लुईस बिल राइट से भी मिले थे।
जिन्होंने 1909 में पहली बार इंग्लिश चैनल पर उड़ान भरने का कारनामा दिखाया था और दोस्तों J.R.D. ही भारत में पायलट बनने वाले पहले शख्स थे। 2 साल बाद उन्होंने भारत की पहली एयरबेस सर्विस शुरू की तब वे विमान को खुद ही उड़ाया करते थे। यह हवाई सेवा आगे चलकर भारत की पहली एयर लाइन्स टाटा एयर लाइन्स बनी। जी हाँ, ये वही एयर लाइन्स है जिसे आज आप एयर इंडिया के नाम से जानते हैं।
जब टेक्नोलॉज का युग आया तो J.R.D TATA ने 1968 में टाटा कन्सल्टेंसी सर्विसेज ( T.C.S) की स्थापना की ताकि कंपनी का पेपर वर्क कंप्यूटर के माध्यम से हो और दोस्तों आज tcs पूरे टाटा समूह की सबसे मुनाफ़े वाली कंपनी है जो दुनिया भर में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की आपूर्ति करती है। सन 1991 में रतन टाटा समूह के मुखिया बने, तब उदारीकरण का दौर शुरू हो गया था। और रतन टाटा ने दुनिया भर में पांव पसारने शुरू किये। टाटा समूह ने Tetly का अधिग्रहण किया। इसके अलावा इन्श्योरेन्स कंपनी A.I.G. के साथ उन्होंने बोस्टन में एक संयुक्त इन्श्योरेन्स कंपनी खोली। उन्होंने यूरोप के Corus का भी अधिग्रहण कर लिया।
हमेशा से ही रतन टाटा का फोकस ऑटो सेक्टर की कंपनी Tata Moters पर रहा है। उन्होंने इसके जरिए कई तरह के प्रयोग भी किया।और टाटा ने पहली देशी पैसेंजर कार इंडिका को भी बनाया था। इंडिका को लेकर रतन टाटा काफी उत्साहित थे, लेकिन शुरुआती दिनों में उन्हें उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले। इस वजह से रतन टाटा ने अपने कार बिज़नेस को बेचने का फैसला किया।
इस बिज़नेस को खरीदने के लिए अमेरिका की कार निर्माता कंपनी फोर्ड ने दिलचस्पी दिखाई थी। फाइनल करने के लिए जब रतन टाटा को अमेरिका में फोर्ड मोटर्स के हेड क्वार्टर बुलाया गया। हेडक्वाटर्स में 3 घंटे तक चली मीटिंग के दौरान फोर्ड के अधिकारियों का व्यवहार थोड़ा अपमानजनक रहा था। फोर्ड के अधिकारियों ने रतन टाटा से ये तक कह दिया था की जब आपको कार बनानी नहीं आती तो कार बनाना शुरू ही क्यों किया था? असल में फोर्ड के ये अधिकारी ये दिखा रहे थे जैसे वो Tata के कारोबार को खरीदकर उन पर एहसान कर रहे हो| लेकिन रतन टाटा ने ये डील कैंसल कर दी।
उन्होंने भारत वापस आकर एक बार फिर टाटा मोटर्स पर फोकस किया। इसी बीच साल 2008 की मंदी से फोर्ड मोटर्स को काफी नुकसान उठाना पड़ा। फोर्ड की हालत इतनी खराब हो गई कि उसने अपने Jaguarऔर Land Rover ब्रैंड को बेचने का फैसला किया, जिसे खरीदने के लिए रतन टाटा सबसे आगे आए और उन्होंने इस पर कब्जा जमाया। इस तरह से रतन टाटा ने अपने अपमान का बदला लिया था।
आर्थिक मंदी के दौर में टाटा को लेकर एक बड़ा विवाद तब उठा। जब TATA ने यूरोप के अपने स्टील ऑपरेशन्स के बड़े हिस्से को बेचने का फैसला किया तब ब्रिटेन की कर्मचारी यूनियन ने आरोप लगाया कि TATA अपने मूल्यों के प्रति ईमानदार नहीं है। तब रतन टाटा भारत से सीधे ब्रिटेन पहुंचे और घोषणा की कि बिना किसी सलाह मशवरे के ऐसा नहीं होगा। दिसंबर 2012 में रतन टाटा ने टाटा ग्रुप की कमान टाटा परिवार से बाहर के व्यक्ति साइरस मिस्त्री के हाथों में दे दी थी।
तब उन्हें कंपनी का चेयरपर्सन नियुक्त किया गया था। दोस्तों आप के TATA बारे में क्या सोच रखते है कमेंट बॉक्स में जरूर बताये और हमें फॉलो करना न भूले |