Snapdeal Case Study-
एक समय में Snapdeal इंडिया के सबसे पॉपुलर ई कॉमर्स प्लैटफॉर्म्स में से एक था और सिर्फ छह सालों में ही यह देश की दूसरी सबसे बड़ी ईकॉमर्स कंपनी बन गया। जब स्नैपडील शुरू में आया था तो इसकी वैल्यूएशन 6. 5 बिलियन डॉलर थी। और इसके इन्वेस्टर्स थे रतन टाटा, ईबे, सॉफ्टबैंक और नेक्सस वेंचर जैसी बड़ी कम्पनीज़। लेकिन फिर 2016 के बाद अचानक से स्नैपडील का मार्केट शेयर 25% से गिरकर सिर्फ 4% पर रह गया। यहाँ तक कि 2017 में तो ये कंपनी बैंकरप्ट होने की कगार पर पहुँच गई थी।तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर बिलियन डॉलर्स की फंडिंग के बाद भी Snapdeal फेल कैसे हो गया? सेलर्स ने इस प्लेटफॉर्म से मुँह क्यों मोड़ लिया। अभी स्नैपडील कैसा परफॉर्म कर रहा है और क्या आने वाले सालों में ये वापस से अपनी पोज़ीशन हासिल कर सकता है? आइए इन सभी सवालों का जवाब हम विस्तार से समझते हैं।
दोस्तों स्नैपडील की शुरुआत कुणाल बहल और रोहित बंसल ने 2010 में की थी। उस समय इंडिया में इसका सिर्फ एक ही कॉम्पिटिटर था Flipkart। लेकिन जहाँ आज फ्लिपकार्ट का मार्केट शेयर 50% है, वहीं स्नैपडील का सिर्फ 4% के आसपास अब Snapdeal ने अपने शुरुआती सालों में तो खूब कमाल दिखाया। बहुत बड़ी संख्या में सेलर्स को खुद से जोड़ा था, और कई बड़े बड़े इन्वेस्टर्स को अट्रैक्ट किया और खूब फन्डिंग बटोरे। लेकिन धीरे धीरे इस कंपनी के सुनहरे दिन खत्म होने लगे । सेलर इसे छोड़कर जाने लगे।कस्टमर से मिलने वाली शिकायतों का लंबा सिलसिला शुरू हो गया और यहाँ तक कि इस कंपनी में काम कर रहे हैं। लोग भी इससे मुँह मोड़ने लगे। लेकिन यह सब हुआ क्यों?
आइए जानते हैं। अब अगर हम सबसे पहले कस्टमर्स के प्रॉब्लम को समझे तो अधिकतम प्रोडक्ट्स उन्हें डिलिवरी डेट निकल जाने के बाद मिल रहे थे। इसके अलावा कस्टमर ऑर्डर कुछ और कर रहे थे और उन्हें रिसीव कुछ और ही होता था। Snapdeal के बैकफुट में जाने के यही कारण है कभी डिलिवरी लेट रही है तो कभी रिफंड ही नहीं मिला। बेसिकली ये गड़बड़ियां स्नैपडील के मैनेजमेंट की वजह से हो रही थी, क्योंकि इनके पास को चेक करने का कोई प्रॉपर प्रोसीज़र ही नहीं था जिसका फायदा फेक सेलर्स उठा रहे थे और फंसते जा रहे थे कस्टमर्स और दोस्तों। यही कारण था कि लोग इस प्लेटफॉर्म को हमेशा के लिए बाय कहकर ऐमजॉन और फ्लिपकार्ट जैसे प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट होने लगे। अब अगर बात करे Snapdeal के सेलर्स की तो कस्टमर्स की तरह ही वो भी स्नैपडील से निराश हो चुके थे और उन्होंने भी धीरे धीरे यहाँ से मूव करना शुरू कर दिया। अब शुरुआती दिनों में तो ज्यादा से ज्यादा सेलर स्नैपडील से जुड़ना चाहते थे, क्योंकि यह उनके लिए बहुत ही प्रॉफिटेबल प्लैटफॉर्म था। हर दिन बहुत सारे ऑर्डर्स मिलते थे और अच्छी सेल होती थी। कंपनी की पॉलिसी भी बहुत अच्छी थी और मैनेजमेंट भी ठीक ठाक काम कर रहा था। इसके अलावा स्नैपडील की सबसे अच्छी बात यह लगती थी कि बाकी कंपनी जहाँ 21 दिन में पैसे दे रही थी, वहीं स्नैपडील उन्हें सिर्फ और 7 दिन में ही पेमेंट कर देता था। लेकिन थोड़े टाइम बाद चीजें बदलने लगीं। सेलर्स के लिए इस प्लैटफॉर्म से जुड़े रहना है। एक सिरदर्द बन गया क्योंकि स्नैपडील बार बार बेकार की पॉलिसीज लेकर आता था। छोटी से छोटी एरर की वजह से भरोसेमंद सेलर्स का अकाउंट ब्लॉक कर देता था और जब वो उसे अनब्लॉक करने जाते तो कंपनी के मेंबर्स को ही पता नहीं होता था कि इस पर फैसला कौन लेगा? इसके अलावा कंपनी ने एक अजीब सी पॉलिसी बनाई की सारे सेलर्स को अपने वेयर हाउस को बंद करके स्नैपडील के वेयरहाउस में समान लाना होगा। अब सेलर्स के पास खुद के बड़े बड़े वेयर हाउसेस थे, जहाँ वो अपने कम्फर्ट के हिसाब से प्रॉडक्ट रखते हैं और उसे डिलिवरी के लिए भेजते थे। अब इनमें से जब कुछ बड़े सेलर्स ने अपना प्रॉडक्ट शिफ्ट करने से इनकार कर दिया तो कंपनी एक और पॉलिसी लेकर आई की सेलर्स अपने वेयरहाउस से डेली सिर्फ पांच प्रॉडक्ट ही बेच सकते हैं। अब जहाँ वो डेली के हजारों ऑर्डर्स लेते थे वो सिर्फ वो पांच रह गया जो कि उनके लिए ना के बराबर था । ऐसे में मजबूर होकर सभी सेलर्स को अपने प्रोडक्ट्स स्नैपडील के पास भेजने पड़े, लेकिन स्नैपडील के वेयरहाउस में तो जगह ही नहीं थी। की वो इतने सारे प्रोडक्ट्स को रखें जिसके बाद से स्नैपडील ने फिर से पॉलिसी चेंज की और सेलर से ये कहा या तो वो इनके वेयरहाउस में सामान रखने के लिए कुछ रेंट पे करें या फिर अपने सामान को वापस लेकर जाएं। अब सबसे हैरानी वाली बात तो ये थी कि जब सेलर्स अपने प्रोडक्ट्स को वापस लेने गए तब उन्हें पता चला कि इनमें से बहुत सारे सामानों की चोरी हो गयी है और इस चोरी में मैनेजर तक शामिल थे। अब जब सेलर्स ने इसकी शिकायत कंपनी के CEO से की तो फिर उन्होंने इसपर कोई भी रिस्पॉन्स नहीं दिया। ऐसे में इस मामले पर ना ही कोई कार्यवाही हुई। और ना ही सेलर्स के लॉस की भरपाई। इन्हीं सभी कारणों की वजह से बहुत सारे सेलर्स स्नैपडील को छोड़कर फ्लिपकार्ट या फिर ऐमज़ॉन पर शिफ्ट होने लगे। जिससे आज स्नैपडील की ये हालत हुई पड़ी है
Snapdeal के फेल होने का दूसरा कारन यह भी था की स्नैपडील, Amazon की अपेछा में तीन गुना Selling cost लेता था।और हाँ, Snapdeal के बर्बादी में सबसे बड़ा रोल इनके लीडरशिप की भी रही, क्योंकि कंपनी के सारे डिसीजन दो CEO लिया करते थे और इसमें किसी भी सीनियर मैनेजमेंट की राय नहीं ले जाती थी। बार बार बनाई गई खराब पॉलिसीस ने भी कंपनी काम कर रहे लोग और सेलर्स को काफी परेशान किया जिसकी वजह से स्नैपडील की हालत ख़राब हुई पड़ी है|
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