कहानी हीरो और हौंडा की –
दोस्तों, हीरो मोटोकॉर्प, बजाज और टीवीएस इंडिया की ऐसी कम्पनीज़ हैं जिनको दुनिया की टॉप टू वीलर कम्पनीज़ में गिना जाता है। लेकिन जापान की होंडा और कावासाकी जैसी टू वीलर कंपनी के टेक्नोलॉजी और जॉइंट वेंचर के बिना यह करिश्मा कर पाना पॉसिबल नहीं था, क्योंकि हमारे पास ना तो टेक्नोलॉजी थी और ना ही रिसर्च और डेवलपमेंट की सुविधाएं।
हम मजबूर थे उन विदेशी कम्पनीज़ की सारी शर्तों को मानकर उनके साथ काम करने के लिए। लेकिन जैसे ही इंडियन कंपनीज को यह लगा कि अब उनके सहारे की जरूरत नहीं है तो किसी ना किसी मुद्दें को आधार बनाकर वह ज्वाइंट वेंचर से अलग हो गए।
ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा है हीरो ग्रुप और होंडा मोटर्स के बीच का। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है की इतना सक्सेस फुल पार्ट्नरशिप होने के बावजूद भी हीरो ग्रुप और होंडा मोटर्स अलग क्यों हो गए?
एक साइकल बनाने वाली कंपनी के पास आखिर इतनी हिम्मत कहाँ से आ गयी की दुनिया की नंबर वन बाइक बनाने वाली कंपनी से अपने रिश्ते खत्म कर लिए और अलग होकर हीरो ग्रुप के सामने आखिर क्या दिक्कते आई है, उनसे निपटने के क्या उपाय किए गए हैं? किसको फायदा हुआ और किसको नुकसान हुआ? आज हम इन्हीं सब बातों को गहराई से जानने वाले है।
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साल 1956 में जब बृजमोहन लाल मुंजाल ने एक साइकल स्पेयर पार्ट्स के बिज़नेस से
हीरो साइकल्स की शुरुआत की और देखते ही देखते यह कंपनी इंडिया ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी साइकल बनाने वाली कंपनी बन गई।
फिर उन्हें लगा कि दुनिया टू व्हीलर इंडस्ट्री में काफी तेजी से ग्रो कर रही है, लेकिन इंडिया तो अभी भी स्कूटर पर ही अटका हुआ है और इसी गैप को पूरा करने के लिए वह इंडियन मार्केट में मोटरसाइकिल उतारना चाहते थे। लेकिन उस वक्त हीरो के साथ प्रॉब्लम यह थी कि उनके पास इंजन बनाने की टेक्नोलॉजी नहीं थी इसलिए अपने प्लैन को ऐक्शन में लाने के लिए साल 1984 में उन्होंने होंडा मोटर्स को एक प्रपोजल भेजा और साथ मिलकर बाइक बनाने की बात रखी।
ऐक्चूअली इस डील में हॉन्डा को भी अपना फायदा दिखा क्योंकि हीरो के जरिए उन्हें इंडिया जैसे बड़े मार्केट में एंटर करने का मौका मिल रहा था।
क्युकी उस दौर में किसी भी विदेशी कंपनी को इंडिया में अकेले बिज़नेस करने की इजाजत नहीं थी। फिर हीरो और होंडा के बीच जॉइंट वेंचर में काम करने पर बात बन गई और साथ में उनके बीच एक NOC भी साइन हुआ कि फ्यूचर में कभी भी दोनों कम्पनीज़ एक दूसरे के मुकाबले में अपना कोई प्रॉडक्ट लॉन्च नहीं करेंगे।
हरियाणा में अपना पहला प्रोडक्शन प्लांट इस्टैब्लिश करने के बाद साल 1985 में जब हीरो होंडा ने CD 100 नाम से अपनी पहली बाइक लॉन्च किया,
जिसमें बाइक की बॉडी बनाने का जिम्मा हीरो का था और इंजन की सप्लाइ होंडा को करनी थी। इसके बाद इस स्प्लेंडर और पैशन जैसे कुछ पॉपुलर बाइक्स ने हिरो होंडा की पोज़ीशन को और मजबूत कर दिया।
साल 2001 आते-आते इंडियन टू वीलर इंडस्ट्री में 50% से भी ज्यादा मार्केट शेयर के साथ हीरो होंडा की मोनोपॉली हो गई और वह दुनिया की सबसे बड़ी टू वीलर कंपनी बन गई। लेकिन आप सोच रहे होंगे कि जब बिज़नेस में सब कुछ अच्छा चल रहा था
तो 2010 में मुंजाल साहब होंडा से अलग क्यों हो गए? असल में ऊपर से तो चीजें अच्छी नजर आ रही थी, लेकिन अंदर ही अंदर मैनेजमेंट के बीच कुछ बातों को लेकर लंबे समय से प्रॉब्लम चल रही थी।
जिसमे दो मुददे ऐसे थे, जो बाद में उनके अलग होने के मेन रीज़न बन गए हैं। सबसे पहला रीज़न तो यह था कि साल 2000 के बाद बजाज ऑटो, टीवीएस, यामाहा और सुज़ुकी जैसे कई नए प्लेयर्स इंडियन मार्केट में आ गए, जिससे हिरो होंडा के मार्केट शेयर पर प्रेशर आने लगा। तब होंडा मोटर्स ने इन नए प्लेयर्स के साथ सीधे कॉम्पिटिशन करने के लिए साल 1999 में होंडा मोटर साइकल ऐंड स्कूटर इंडिया नाम की एक अलग कंपनी शुरू कर दी और ऐक्टिवा नाम से एक स्कूटर भी लॉन्च कर दिया जो कि हीरो के साथ हुए उनके एग्रीमेंट के बिल्कुल खिलाफ़ था
और दूसरा रीज़न यह था कि साइकल प्रोडक्शन में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी होने के बावजूद भी हीरो को अपने बाइक्स नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे कुछ पड़ोसी देशो के अलावा इंटरनेशनल मार्केट में एक्सपोर्ट करने की परमिशन नहीं थी।
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जबकि होंडा अपने बाइक्स अमेरिका और Uk जैसे डेवलप्ड कन्ट्रीज में भेजकर अच्छा प्रॉफिट कमा रहा था। मुंजाल साहब यह बात समझ गए थे कि इंटरनेशनल मार्केट में जो पोज़ीशन वह चाहते हैं उसके लिए उन्हें अपना खुद का इंजिन डेवलप करना ही पड़ेगा और
इसलिए हीरो अपने प्रॉफिट का ज्यादातर हिस्सा इंजिन डेवलप करने पर खर्च करने लगा, जिसके चलते दोनों के बीच का दरार और भी ज्यादा बढ़ गया और इसका रिज़ल्ट यह हुआ कि हीरो और होंडा के रास्ते अलग हो गए।
जिस होंडा मोटर्स के साथ मिलकर हीरो ग्रुप ने दुनिया की सबसे बड़ी बाइक कंपनी होने का खिताब जीता था। आज वहीं होंडा ग्रुप उनका सबसे बड़ा कॉम्पिटीटर बनकर खड़ा था।
दोस्तों आइए अब चलते है अपनी कहानी के क्लाइमेक्स में और जानने की कोशिश करते हैं कि होंडा से अलग होकर हीरो ने अपने आप को खड़ा कैसे किया, उनकी अपनी एक ब्रैंड इमेज कैसे बनी और मोस्ट इम्पोर्टेन्ट उनके फाइनेंशियल कंडीशन्स पर इसका क्या असर हुआ?
हीरो, होंडा के जॉइंट वेंचर मुंजाल परिवार और होंडा की 26% की हिस्सेदारी थी, जिसमें होंडा के 26% स्टेक हीरो ग्रुप ने खरीदकर कंपनी का नाम हीरो होंडा से बदलकर हीरो मोटोकॉर्प कर दिया और डी मर्जर के समय एक एग्रीमेंट हुआ कि साल 2014 तक होंडा अपने इंजन और टेक्नोलॉजी का सपोर्ट हीरो को देता रहेगा,
जिसके बदले में हीरो को उन्हें रॉयल्टी बोनस देना पड़ेगा और साथ ही मोटर साइकल को हीरो होंडा के नाम से ही भेजा जाएगा।
मुंजाल साहब के सामने चुनौतियों का एक पहाड़ खड़ा था। उनके पास खुद का RND सेंटर, मैन्युफैक्चरिंग प्लांट और सप्लाइ चेन इस्टैब्लिश करने के लिए
सिर्फ तीन से 4 साल का वक्त था। लेकिन हीरो मोटोकोर्प ने सारे चैलेंजेस को ओवर कम करते हुए साल 2014 में राजस्थान के नीमराना में अपने पहले प्रोडक्शन यूनिट को शुरू कर दिया। साथ ही जयपुर में एक वर्ल्ड क्लास RND सेंटर की भी नींव रख दी, जो साल 2016 में 850 करोड़ की लागत से बनकर तैयार हुआ।
इसके अलावा सप्लाई चेन और सर्विस नेटवर्क को भी दुरुस्त करने के लिए हेवी इन्वेस्ट किया गया और आखिरकार अपने खुद के इंजिन के साथ स्प्लेंडर, पैशन और ग्लैमर जैसे मोटर साइकल को लॉन्च कर दिया गया। लेकिन क्या इतना ही सब कुछ हीरो के सक्सेस के लिए काफी था?
शायद नहीं, क्योंकि हीरो को लोग एक साइकल बनाने वाली कंपनी के लिए जानते थे। मोटर साइकल तो होंडा के नाम पर बिकती थीं। अब हीरो को जरूरत थी
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अपने ब्रैंड इमेज को मजबूत करने की। उन्हें होंडा से अलग अपनी पहचान एक बाइक कंपनी के रूप में बनाने की चुनौती थी। इसलिए एक नया लोगो और एक नई टैगलाइन हम में है। हीरो से कंपनी का रीब्रैंडिंग शुरू किया गया,
जिसमें यूथ को टारगेट करते हुए हीरो मोटोकोर्प को एक कस्टमर सेंट्रिक ब्रैंड के रूप में पेश किया गया। हीरो मोटोकोर्प का नया लोगो और ब्रैंड आइडेंटिटी ब्रिटिश की एक फेमस फार्म ने डेवलप किया।
हीरो ग्रुप ने यहाँ पर भी बाजी मार ली और लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब हो गए। अब इतना सब कुछ हो जानने के बाद आप हीरो मोटोकोर्प के फाइनेंशियल परफॉर्मेंस और सेल्स फिगर को भी जरूर जानना चाहेंगे कि आखिर होंडा से अलग होकर फायदा हुआ है या नुकसान?
दोस्तों होंडा मोटर्स एक मल्टिनैशनल कंपनी है जो इंडिया के अलावा पूरी दुनिया में अपने टू वीलर्स और फ़ोर वीलर्स के साथ मौजूद है। जबकि हीरो मोटोकोर्प ने होंडा से अलग होने के बाद अपना ग्लोबल एक्सपैंशन शुरू किया था और आज 40 देशों तक अपनी पहुँच बना पाया है। होंडा से अलग होने के बाद हीरो मोटोकोर्प का नेटवर्क लगभग 7 बिलियन डॉलर्स था।
जो ऑटो सेक्टर की लंबी मंदी के बावजूद भी आज लगभग 7.5 बिलियन डॉलर से जो कंपनी के कॉन्स्टेंट परफॉर्मेंस को दिखाता है और वहीं होंडा मोटर्स का नेटवर्थ साल 2011 के 55 बिलियन डॉलर से घटकर 45 बिलियन डॉलर्स हो गया है। और दोस्तों हीरो होंडा जब मिलकर काम कर रहे थे तो 50% से भी ज्यादा इंडियन टू वीलर मार्केट पर उन्हीं का कब्जा था।
जबकि साल 2022 के सेल्स डेटा के हिसाब से देखा जाए तो हीरो 53,00,000 टू वीलर बेचकर इंडिया की सबसे बड़ी टू वीलर कंपनी है, जिसके पास लगभग 35% मार्केट शेयर मौजूद है।
जबकि 25% मार्केट शेयर के साथ होंडा मोटर्स दूसरे पायदान पर आता है, जिसकी सेल 2022 में लगभग 40 लाख यूनिट्स बेची गई थी और बात अगर हीरो के प्रॉडक्ट लाइन की करें तो इस स्प्लेंडर, पैशन और ग्लैमर जैसे पॉपुलर बाइक्स के साथ ऑफ रोड एडवेंचर्स के लिए Xpluse 200 सिरीज़ और प्लेजर,मेस्ट्रो और डेस्टिनी जैसे स्कूटर्स भी पोर्टफोलियों में मौजूद है
दोस्तों साल 2019 में हीरो ने से 1.8 मिलियन बाइक्स बेचकर दुनिया में सबसे ज्यादा बाइक्स बेचने का रिकॉर्ड बनाया था। इसके साथ ही यह 100 मिलियन टू वीलर बनाने वाली दुनिया की इकलौती कंपनी है।
लेकिन आप जानकर हैरान होंगे कि इनके टोटल सेल्स का 70% से भी ज्यादा हिस्सा इस स्प्लेंडर का होता है। एक बात कमेंट में यह बताना की आपकी पसंदीदा बाइक कौन सी है | गया इसके पीछे की वजह क्या थी?