इंडिया का सबसे पहला स्टॉक मार्केट क्रैश साल 1865 में हुआ था और उस वक्त इंडिया में बॉम्बे स्टॉक एक्स्चेंज और नेशनल स्टॉक एक्स्चेंज दोनों ही नहीं थे। BSE और NSE के बनने से पहले स्टॉक्स की ट्रेनिंग बहुत ही अनोर्गनाइज्ड थी। लोगों के बीच प्राइवेट डील्स होती थी, जिसमें बायर और सेलर एक कंपनी के शेयर प्राइस को लेकर नेगोशिएट करते थे।
इसी तरह जब 19वी शताब्दी में अमेरिकन सिविल वॉर चल रही थी तब इस वॉर का एक पॉज़िटिव इम्पैक्ट इंडियन स्टॉक मार्केट पर पड़ा। इस वक्त इंडिया में कॉटन की डिमॅंड बहुत ज्यादा बढ़ गई थी और गुजरात के लोग अपने कॉटन को बेचकर करी हुई कमाई को स्टॉक मार्केट में लगा रहे थे।
वजह से इंडियन कंपनियों के स्टॉक्स बहुत ज्यादा बढ़ गए थे उदाहरण के लिए, एक कंपनी के शेयर की कीमत ₹5000 से बढ़कर ₹50,000 तक पहुँच गई। हालांकि, जब 1865 में यह युद्ध समाप्त हुआ, तो कपास की मांग में कमी आई, जिससे शेयर की कीमतें तेजी से गिर गईं। इस गिरावट के कारण भारतीय स्टॉक मार्केट में बड़ा संकट आया और पूरा स्टॉक मार्केट बुरी तरीके से क्रॅश हो गया और कई कम्पनिया बंद हो गई और कई लोगों ने अपनी नौकरिया गवा दी, जिसकी वजह से उन्हें अपना शहर तक छोड़ना पड़ा।
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