ये कहानी है पालम कल्याण सुंदरम् जी की –
कहते हैं कर्ण से बड़ा दानवीर कोई नहीं लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रही है जिन्हें इस आधुनिक युग में कर्ण के समान दान करने की इच्छा दिखाई|
कहते हैं अगर आप एक हाथ से दान करें तो आपके दूसरे हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। वही असली दान है, लेकिन जिसकी प्रशंसा भगवान् करे भला वो कैसे छुप सकता है? ऐसे ही एक दानवीर ने भारत की धरती पर जन्म लिया और हम सबके लिए प्रेरणा बन गए।
वो है पालम कल्याण सुंदरम् शायद आप में से कुछ लोगों ने उनका नाम सुना होगा, जिन्हें पद्मश्री से नवाजा गया, जिन्हें यूनाइटेड नेशन्स ने 20 शदी के आउटस्टैंडिंग लोगों में शुमार किया, जिन्हें अमेरिका की एक ऑर्गेनाइजेशन मैन ऑफ़ दी मिलेनियम अवार्ड दे चुकी है, जिन्हें सुपरस्टार रजनीकांत अपने पिता के रूप में मान चूके हैं, जिनसे अमेरिका के फार्मर प्रेसिडेंट मिस्टर बिल क्लिंटन इंडिया विजिट के दौरान मिलना चाहते थे।
जिन्हें भारत सरकार ने बेस्ट लाइब्रेरियन ऑफ़ दी इंडिया माना है और इंटरनेशनल बायोलॉजिकल सेंटर से वॅन ऑफ़ दी नोबेलिस्ट ऑफ़ दी वर्ल्ड का सम्मान दिया गया है। कई ऐसे अवार्ड्स और सम्मान इन्हें मिले हैं जो हम आगे कहानी में आपको बताएंगे। आप सोचेंगे क्या ये सब सिर्फ चैरिटी की वजह से मिला है। पहले दोस्तों ऐसी वैसी चैरिटी नहीं बल्कि इन्होंने तो अपना सब कुछ दान कर दिया और दान करने से पहले गरीबी को जिया है। कल्याण सुंदरम् जी ने
कल्याण सुंदरम् जी पेशे से एक लाइब्रेरियन थे, जिन्होंने लाइब्रेरियन साइंस की पढ़ाई की और 35 साल तक लाइब्रेरियन के रूप में काम किया। इस पूरी जर्नी में उन्होंने अपनी सैलरी का 50% नहीं बल्कि 100% यानी पूरी सैलरी ही हर बार दान कर दी। कल्याण सुन्दरम जी को पढ़ाई के समय ही अनाथ, गरीब और बेसहारा लोगो पर तरस आता था। और वो छोटी-मोटी मदद करते रहते थे
जो शायद उन्हें काफी नहीं लगती थी। उनके मन में गरीब लोगों के लिए कुछ करने का जज्बा हमेशा से था। इसलिए तो इंडो-चीन युद्ध के दौरान नेहरू जी के डिफेन्स फण्ड में दान करने के अनुरोध को कल्याण सुंदरम् जी ने इस तरह लिया की अपनी गोल्ड की चैन उठाई और डिफेन्स फण्ड में दान करती। जिसके लिए उन्हें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने साल 1963 में सम्मानित भी किया था।
लेकिन उनकी इस खबर को एक पॉपुलर मैगज़ीन के एडिटर ने छापने से मना करते हुए कहा, जिस दिन खुद कमाओगे और दान करोगे तब तुम्हारे बारे में छापूंगा कल्याण सुंदरम् जी ने इसे चुनौती की तरह लिया और जो भी दान किया उसके बारे में किसी को कभी कुछ नहीं बताया। पर उनका दान किसी से नहीं छिपा। इसके साथ ही वो अपनी पढ़ाई भी जारी रखे रहे, लेकिन अचंभा तो तब हुआ जब उन्होंने गरीबी को समझने के लिए फुटपाथ और प्लेटफार्म पर रात बिताई। जहा ना तो सर के ऊपर छत और ना ही खाने के लिए खाना।
कई बार उनके स्टूडेंट्स ने भी उन्हें देखा लेकिन इससे उन्हें कोई हिचकिचाहट नहीं हुई। उन्होंने अपनी सारी सैलरी चैरिटी में ही दी और अपने खर्चे के लिए छोटे मोटे काम किये। जैसे होटल और लांड्री का काम उनका खर्चा कम था। इसकी सबसे बड़ी वजह थी उनका कभी शादी नहीं करना। उनका कहना था।
मेरी जरूरतें बहुत कम रही हैं, इसलिए मैं अपना वेतन और पेंशन दान कर देता हूँ ये समाज ही मेरा परिवार है, मैं समाज के लिए जीता हूँ। हर इंसान मौत के बाद इस दुनिया से खाली हाथ जाता है, फिर संपत्ति जोड़ने से भला क्या फायदा?
समाज और गरीबों के लिए ऐसा जुनूनी शायद ही आपने किसी को देखा होगा। उनके इस जुनून ने उन्हें दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया। उनका कहना था इस दुनिया में हर इंसान मृत्यु के बाद खाली हाथ जाता है। फिर संपत्ति जोड़ने की होड़ कैसी? दूसरों के लिए जियो, बड़ा सुकून मिलेगा।
इस लिए कल्याण, सुंदरम् जी इस युग का दानवीर कर्ण कहा जाता है| इस दी बेस्ट रियल यूथ ऑफ़ इंडिया।