बीते करीब 2 दशकों में इंजीनियरिंग कॉलेजेस में पढाई करने वाले स्टूडेंट्स की सबसे बड़ी उम्मीद Infosys हुआ करती थी और हो भी क्यों न, देश की यह दिग्गज कंपनी भर भर के स्टूडेंट्स को रिक्रूट करती थी। लेकिन अब वो पुराने दिन नहीं रहे। ऐसा AI इंटेलिजेन्स के बढ़ते प्रभाव के कारण भी हो सकता है?
देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले आईटी कंपनियां धड़ाधड़ कटौती कर रही है।
हाथ खोलकर कैंपस प्लेसमेंट करने वाले Infosys ने 2024 में रिक्रूटमेंट के मामले में मुट्ठी भींच ली। इन्फोसिस ने 2024 में कैंपस से सिर्फ 11 हजार 900 रिक्रूटमेंट किए थे।
कंपनी ने खुद अपनी एनुअल रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है। पिछले साल के मुकाबले की संख्या 76% कम है।
बीते साल इन्फोसिस ने 50 हजार से ज्यादा छात्रों का कैंपस प्लेसमेंट किया था। फिलहाल कंपनी के पास कुल कर्मचारियों की संख्या 3 लाख 17 हजार है।
बीते 2 दशकों में नौकरियां देने के मामले में दिलदार रही देश की बड़ी आईटी कंपनियां तेजी से नौकरियों में कटौती कर रही है।
कुछ जगह नई हायरिंग फ्रीज है तो कुछ में नौकरी देने की रफ्तार धीमी है।
हाल ही में सिर्फ Infosys के खराब आंकड़े नहीं बता रहे है बल्कि पूरे आईटी सेक्टर में रिक्रूटमेंट के नाम पर दूरी बनती हुई नजर आ रही है।
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बीते 1 साल में TCS , Infosys और Wipro ने कुल मिलाकर कर्मचारियों की संख्या में लगभग 64 हजार की गिरावट आई है।
बीते 1 साल में इन्फोसिस में जितनी तेजी से कर्मचारी घटे हैं, उतनी गिरावट 20 साल में देखने को नहीं मिली।
वित्त वर्ष 2024 के दौरान Infosys के 25 हजार 994 कर्मचारियों की कमी उनको देखने को मिली।
वहीं TCS के कर्मचारियों की अगर बात करे तो उसकी संख्या 13 हजार 249 की कमी दर्ज की गई।
इन फोर्सेस की गिरावट इसलिए भी काफी ज्यादा है क्योंकि TCS के मुकाबले इन फोर्सेस के कर्मचारियों की संख्या लगभग आधी है। नौकरियां जाने के मामले में Wipro भी कम नहीं है। बीते साल यहाँ 24 हजार 516 कर्मचारियों की कमी देखी गई।
इसके अलावा कई छोटी आईटी कंपनियों और स्टार्ट अप बंद होने के कारण नौकरियां स्थायी रूप से कम हो गई है। अब इसका असर भी देख लेते हैं की क्या होता है तो नौकरियां कम होने का। सीधा असर तो जॉब की मौजूदा मांग पर पड़ेगा।
आईटी कंपनियों में जॉब कट के चलते बड़ी संख्या में प्रोफेशनल्स की जॉब गई है। ऐसे में पहले ही यहाँ पर संकट है।
वहीं हर साल इंजीनियरिंग कॉलेज से आपको बता दे की पास आउट होने वाले लाखों युवाओं के सामने भी प्लेसमेंट का संकट है। ये कंपनियां भी जॉब देने के मामले में काफी देरी ला रही है।
आपका कॉलेज रिप्यूटेड है, रैंकिंग अच्छी है तो ये कंपनियां कैंपस प्लेसमेंट में भर भर के जॉब देती थी। लेकिन जब 64 हजार से ज्यादा जॉब कम होंगी तो इन छात्रों के भविष्य पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
देश के युवाओं के बीच MCA जैसे कोर्स के प्रचलित होने के पीछे सबसे बड़ा कारण ये मोटी सैलरी वाले जॉब थे। लेकिन अब जब आईटी जॉब में कमी आएगी तो इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेने वालों में कमी आएगी।
ऐसे में इन जॉब कटौती का जो असर है, वो कॉलेज और यनिवर्सिटी की इकोनॉमी पर भी पड़ेगा।
अब जरा जान लेते है की इन छटनियों की बाद आखिर आ क्यों रही है। इसकी वजह क्या है।
तो कंपनियों ने कोरोना महामारी के दौरान ही छटनियों की शुरुआत कर दी।सबसे पहले इसकी शुरुआत हायरिंग में कटौती से हुई थी। इन कंपनियों ने पहले नई भर्तियों पर रोक लगाई।
उसके बाद वर्क फोर्स में नई एंट्रियाँ बंद की।इसके बाद शुरू हुआ छटनियों का सिलसिला।नौकरियों में कटौती के पीछे आर्थिक संकट की वजह है।
ज्यादातर कंपनियां इस समय नकदी संकट से जूझ रही है। कई कंपनियों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी AI की दौड़ शामिल है।
इसकी वजह से उनका फोकस AI की जानकारी रखने वालों को खुद से जोड़ने पर है।
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ऐसे में पुराने लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ रहा है। तो आप लोगों का क्या कहना है की लोगो की जॉब जाने किस हद तक उनके भविष्य को नुकसान पहुँचा सकता है।
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