इंडियन मोबाइल ब्रांड Down fall-
दोस्तों साल 2014 की रिपोर्ट के अकॉर्डिंग माइक्रोमाक्स सैमसंग को भी बीट करके इंडिया का नंबर 1 मोबाइल वेंडर बन गया था। उस टाइम मोबाइल फ़ोन मार्केट का 16.6% शेयर इंडिया की कंपनी माइक्रोमाक्स का हुआ करता था। लेकिन अब 2023 में की रिपोर्ट के अनुसार Xiaome का 20% मार्केट शेयर के साथ में टॉप पर है। इसके बाद से चाइना के Realme, Oppo, One plus और साउथ कोरिया का Samsung और अमेरिका का Apple स्मार्ट फ़ोन ब्रांड्स भारत में लीड कर रहे है इंडियन कंपनीस का। तो आप कहीं नामो निशान नहीं है।
लेकिन ऐसा क्या हुआ की Micromax और Lava जैसा इंडियन मोबाइल ब्रांड जो की कुछ साल पहले इंडिया के मार्केट को डोमिनेट करते थे वो लगभग पूरी तरह से मार्केट से गायब हो चूके हैं और आज तमाम कोशिशों के बावजूद इंडियन कंपनीस अपने ही लोगों के दिल जीतने में क्यों नाकाम हो जा रही है? चलिए इस पूरे मु्द्दे को हम डीटेल में समझते हैं
तो दोस्तों यह कहानी शुरू होती है। साल 2010 से जब भारत में डेटा के रेट सस्ते हो रहे थे और मार्केट में चीप स्मार्टफोन भी लॉन्च किए जा रहे थे। उस समय करोड़ों लोग अपने कीपैड फ़ोन को हटाकर नया स्मार्टफोन लेने की तरफ बढ़ने लगे।
इंडियन मार्केट में तब तक चाइनीज़ कंपनीस एंटर नहीं हुई थी। वही सैमसंग और एप्पल जैसी कंपनीस भी उस समय सिर्फ अपने प्रीमियम स्मार्टफोन्स के लिए ही जाने थे जो की एक आम भारतीय के पहुँच से काफी दूर थे और फिर इस मौके का फायदा उठाते हैं माइक्रोमैक्स और कार्बन जैसे इंडियन मोबाइल ब्रांड जिनके स्मार्टफोन इतने फीचर वाले तो नहीं थे पर आम भारतीय जीतने फीचर्स को अपने स्मार्ट फ़ोन में एक्सपेक्ट कर रहा था। वो उसे एक अफोर्डबल प्राइस में मिल जा रहे थे।
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यही कारण था कि शुरुआत में इन इंडियन कंपनीस को बहुत तेजी से ग्रोथ मिल जाती है। लेकिन दोबारा इन कंपनीस की किस्मत उस समय पलट जाती है जब जुलाई 2015 में चाइनीज़ स्मार्टफोन ब्रांड xiaome भारत में एंट्री ले लेता है। सिओमी के स्मार्टफोन की कीमत तो इंडियन स्मार्टफोन के आसपास ही थी पर इनके फीचर्स एप्पल और सैमसंग को टक्कर देने वाले थे।
इसी वजह से Xiaome एक ही झटके में इंडियन स्मार्टफोन ब्रांड्स को मार्केट से बाहर फेंक देती हैं और हमारे ब्रांड्स इन्नोवेशन की कमी की खड़े नहीं हो पाते हैं। एक तरफ जहाँ सारे ग्लोबल स्मार्टफोन ब्रांड्स हर दूसरे तीसरे महीने ही नया और अपडेटेड फीचर्स के साथ स्मार्टफोन्स को लॉन्च कर रहे थे और हर समय कुछ ना कुछ नए इन्नोवेशन में लगे रहते थे। अगर इंडियन स्मार्टफोन ब्रांड्स ने थोड़ी भी मुस्तादी दिखाई होती तो आज मार्केट से इंडियन मोबाइल ब्रांड गायब न होते|
इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्ट्री के डेटा के अकॉर्डिंग साल 2022 में इंडिया में 60,00,00,000 मोबाइल यूजर्स थे और एक प्रोजेक्शन के अकॉर्डिंग साल 2040 तक ये संख्या बढ़कर 150,00,00,000 होने वाली है। लेकिन दुःख की बात तो ये है की इतनी ऑपर्च्युनिटी होने के बाद भी भारत का कोई भी स्मार्ट फ़ोन ब्रांड इस मार्केट में अपनी जगह नहीं बना पा रहा है और वो भी तब जब हमारी गवर्नमेंट पिछले कई सालों से मेक इन इंडिया जैसे इनिशिएटिव के थ्रू देश की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को ग्रो करने के लिए जी जान से लगी हुई है।
हमारे पास स्मार्ट फ़ोन मार्केट में एक भी ग्लोबल ब्रांड नहीं है और इसके पीछे एक नहीं बल्कि मल्टीप्ल रीजनस है, जिनमें से पहला रीसन है
1. इन्नोवेशन और रिसर्च एंड डेवलपमेंट की कमी (RND)-
अब दोस्तों चाहे कोई भी टेक्निकल इंडस्ट्री हो, अगर उसमें लगातार नए नए टेक्नोलॉजी को डिस्कवरी नहीं किया जाएगा तो वो इंडस्ट्री समय के साथ पीछे छूट जाने वाली है। क्योंकि कस्टमर चाहे किसी भी देश के भी हो वो हमेशा नई नई चीजों को खरीदने के लिए एक्साइटेड रहते हैं और समय के साथ ही खुद को अपग्रेड रखना चाहते हैं।
क्योंकि अगर कोई स्मार्ट फ़ोन कंपनी अपने डिवाइसेज़ में इन्नोवेशन नहीं करती तो फिर कस्टमर उसके डिवाइस को खरीदने के लिए मोटीवेट नहीं होते। उदाहरण के तौर पर हम 2007 की बात करते हैं जब एप्पल ने अपना पहला ऐफ़ोन लॉन्च किया था। उस टाइम वो दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रॉडक्ट था क्योंकि एप्पल ने एक ऐसे फ़ोन को लॉन्च किया था जिसमें बटन्स नहीं थे बल्कि सिर्फ स्क्रीन दी गई थी।
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अब ऐसा भी नहीं है कि एप्पल स्क्रीन डिवाइस बनाने वाला कोई पहला ब्रांडी था पर एप्पल ने इसे उस लेवल पर इन्नोवेट कर दिया था की दूसरी कंपनीस भी आई फ़ोन के टक्कर का डिवाइस बनाने के लिए मजबूर हो गई थी। यही वजह थी कि इस फ़ोन ने आते ही लोगों के दिलों पर राज़ करना शुरू कर दिया और साल 2012 आते आते एप्पल दुनिया भर में अपने I Phone के लिए पॉपुलर हो गया। जिसके बाद से यह कंपनी हर दिन लाखों की संख्या में स्मार्टफोन्स बेचने लगी। अब दोस्तों आपने देखा होगा
सैमसंग के फोल्डिंग स्मार्टफोन्स काफी पॉपुलर हो रहे हैं जिसे उनके द्वारा सबसे पहले 2019 में लॉन्च किया गया था। हालांकि इस फ़ोन की कीमत काफी ज्यादा है लेकिन टेक्नोलॉजी के मामले में ये एक नया इन्नोवेशन है और लोग इसे हासिल करने के लिए काफी एक्साइटेड रहते हैं। धीरे-धीरे सैमसंग ने अपनी इस टेक्नोलॉजी को और बेहतर किया और फिर कुछ समय के बाद फ्लिप फ़ोन को भी लॉन्च कर दिया। इस फ़ोन के लॉन्च होते हैं सैमसंग की पॉपुलैरिटी लोगों के बीच पहले से काफी ज्यादा बढ़ गई।
और कंपनीस ने भी फ्लिप फ़ोन लाने की कोशिश तो की लेकिन इसमें उन्हें 4 साल से भी ज्यादा का समय लग गया। जीतने में सैमसंग ने फ्लिप फ़ोन मार्केट को पूरी तरह से डोमिनेट कर लिया।
आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि लगातार इन्नोवेशन करना एक ऐसा फॅक्टर है जो कि आपके ब्रांड को टॉप सेलिंग कैटेगरी में रखने के लिए इम्पोर्टेन्ट रोल प्ले करता है। अब सवाल यह है कि जब इन्नोवेशन पर ही ये पूरी इंडस्ट्री टिक्की हुई है, तो फिर इंडियन स्मार्टफोन कंपनीस इन्नोवेशन में इतना पीछे क्यों है?
तो इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है शार्ट-टर्म विज़न का होना। RND पर पैसा खर्च करने की जगह इंडियन ब्रांड्स ने हमेशा मार्केटिंग और सेल्स को ऊपर रखा, जिसका उन्हें बेनिफिट तो मिला लेकिन ये बस कुछ ही समय के लिए था।
2. रि- ब्रांडिंग (Re-Branding)
इंडियन स्मार्टफोन ब्रांड के फेल होने का दूसरा सबसे बड़ा रीसन है रि- ब्रांडिंग। अब दोस्तों जब एप्पल और सैमसंग जैसे ब्रांडी दुनिया भर में अपनी जगह बनाने में लगे हुए थे, उस समय माइक्रो मैक्स इंडियन स्मार्टफोन ब्रांड का टैग लगा कर चुप चाप चीन के स्मार्टफोन्स को मांगा कर बेच रहा था।
उस समय लगभग सभी इंडियन मोबाइल ब्रांड मेजरली दो तरह के बिज़नेस मॉडल पर काम कर रहे थे। या तो वो चीन जैसे देशों से पार्ट्स मांगा कर अपने यहाँ पर असेंबले करते थे या फिर वे बल्क में डाइरेक्टली रेडी टु यूज़ ए स्मार्टफोन्स मांगा कर अपने यहाँ पर रेब्रेंडिंग करके उन फ़ोन्स को सेल कर दिया करते थे। अब रि-ब्रांडिंग करने की एक बड़ी वजह थी। इंडियन ब्रांड्स के पास पैसों की कमी।
अब मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के सेटअप के लिए टेक्नोलॉजी, इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ साथ लेबर में भी इन्वेस्टमेंट की जरूरत थी, लेकिन इंडियन स्मार्टफोन ब्रांड्स के पास बहुत ही लिमिटेड फाइनैंशल रीसोर्सेस थे और उनके लिए बड़े इन्वेस्टमेंट कर पाना काफी ज्यादा चैलेंजिंग था। यही वजह थी कि इन ब्रांड्स ने बहुत ही शार्ट टर्म विज़न रखा और ब्रांड की पहचान बनाने की जगह फॉरिन मैन्युफैक्चरर्स से प्रोडक्ट्स को मांगा कर बेचना और कमिशन बनाना ज्यादा सही समझा।
अब शुरुआत में तो इनकी ये स्ट्रेटेजी काफी जबरदस्त साबित हुई और इन्हें बहुत बेनिफिट भी मिला। लोगों ने जमकर खरीदारी की जिससे कि उस समय चीन के बाद इंडिया कस्टमर के मामले में वर्ल्ड का सेकंड लार्जेस स्मार्टफोन मार्केट बन गया।
अब जब फॉरिन कंट्रीज़ के ब्रांड्स ने यह देखा तो वो एकदम से दंग रह गए। चीन ने सोचा कि यहाँ पर इंडियन ब्रांड्स हमारे ही फ़ोन को बेचकर इतना प्रॉफिट कमा रहा है तो फिर क्यों ना हम खुद ही अपने फ़ोन्स को वहाँ पर बेचने और प्रॉफिट कमाएं? और दोस्तों अपने इसी सोच के साथ ही Xiaome ने जुलाई 2016 में अपना Redmi फ़ोन को इंडिया में लॉन्च कर दिया।
और जैसा की उसने सोचा था उन्हें इसका बहुत ही जबरदस्त रिजल्ट देखने को मिला। जिसके बाद समय के साथ चाइनीज़ ब्रांड्स के अलावा दूसरे विदेशी ब्रांड्स ने भी इंडिया में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को सेट-अप किया और अपने स्मार्ट फ़ोन्स को लोकली मैन्युफैक्चर करने लगे।
और दोस्तों यहाँ कमाल की बात तो ये थी कि एक तरफ जहाँ फॉरिन ब्रांड के फ़ोन लोगों के बीच अपनी पकड़ बना रहे थे तो वही दूसरे तरफ माइक्रोमाक्स एक के बाद एक रि- ब्रांड फ़ोन्स को लॉन्च कर रहा था।
अब इससे आप माइक्रोमैक्स की नादानी कहे या फिर बेवकूफ़ी, ये फैसला मैं आप पर ही छोड़ता हूँ। अब दोस्तों स्मार्ट फ़ोन मार्केट में इंडियन ब्रांड्स के फेल होने का एक और बड़ा रीसन है।
3. ज्यादा मार्जिन ( High Margin )-
इंडियन ब्रांड्स के द्वारा ज्यादा मार्जिन लेना अब आपको पता ही है की स्मार्ट फ़ोन मार्केट बहुत ज्यादा कॉम्पिटेटिव है और यहाँ वही कंपनी टिकती है जो कम मार्जिन और चीप प्राइस पर अपने स्मार्टफोन बेच पाए। इंडियन कंपनी जहाँ अपने मार्जिन को 20-30 परसेंट तक रखती थी।
Xiaome कंपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने के बाद भी सिर्फ 5-6 परसेंट के मार्जिन पर अपने फ़ोन सेल कर रही थी। तो मार्जिन कम होने की वजह से लोगों के लिए चाइनीज़ ब्रांड्स के स्मार्टफोन काफी सस्ते होते थे और जैसा कि मैंने आपको पहले ही बताया कि फीचर्स के मामले में तो भारत चीन को टक्कर ही नहीं दे पा रहा था जिससे कि इंडियन ब्रांड्स का धीरे धीरे अस्तित्व ही समाप्त हो गया।
4. सेल्स और सर्विस ( Sales and Support )-
और दोस्तों इंडियन स्मार्टफोन ब्रांड के फेल होने का एक और बड़ा रीसन था। सेल्स के बाद सपोर्ट और सर्विस का खराब होना अब इंडियन ब्रांड्स फॉरिन कंट्रीज़ से रेडी टु यूज़ कंडीशन में स्मार्ट फ़ोन्स मंगा कर उन्हें बेच तो रहे थे, लेकिन उनके पास सर्विस के नाम पर कुछ नहीं था । अगर किसी कस्टमर का फ़ोन टूट जाता था या फिर किसी वजह से खराब हो जाता था तो फिर उसे रिपेर करवाने में उन्हें महीनों का वक्त लग जाता था।
देखा जाए तो उस समय ये इंडियन मोबाइल ब्रांड अपनी सर्विस देते भी तो कहाँ से? ये लोग फ़ोन चीन से मंगवाते थे। जिस वजह से ना तो उनके पास कोई मेजर कॉंपोनेंट्स होते थे। और ना ही फैक्टरी थी और रिप्लेसमेंट में नया फ़ोन देना भी उनके लिए पॉसिबल नहीं था
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क्योंकि अगर वे ऐसा करते तो फिर लॉस में जाने लगते और दोस्तों इन्हीं सभी रीजन की वजह से आज भी हमारा देश एक ग्लोबल स्मार्टफोन ब्रांड प्रोड्यूस करने में नाकाम साबित हुआ है। अगर जानकारी पसंद आयी हो तो हमें फॉलो जरूर कर ले |