दोस्तों , आज Bala Ji Wafers को कौन नहीं जानता है से सेव मुरमुरा,मसाला मस्ती, गाठिया, पापड़ी आदि खाना कौन नहीं पसंद करता? तो आज इन्हीं Bala Ji Wafers कंपनी के फाउंडर चंदूभाई विरानी के स्ट्रगल के बारे में बात करेंगे। आखिर कैसे बालाजी वेफर्स को इस मुकाम तक लाए। चंदू भाई विरानी का जन्म 31 जनवरी 1957 को जामनगर के दोराजी गांव में हुआ था। चंदूभाई के पिता पोपट भाई किसान थे। और घर के आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। एक समय ऐसा आया जब उनके पिता ने हालातों के चलते सारी जमीन बेच दी। लेकिन कहते हैं ना “अनुभव से मांगा कुछ नहीं होता। ये सब कुछ खोकर मिलता है”।
चंदू भाई के पिता को और उनके परिवार को अनुभव न होने की वजह से बहुत ज्यादा नुकसान भुगतना पड़ा। उस वक्त चंदूभाई केवल 70 इयर्स की उम्र में अपने भाइयो के साथ राजकोट आ गए और नौकरी ढूंढने लगे। चंदू भाई बिरानी को एक सिनेमाहॉल की कैंटीन में जॉब मिली और उनकी मेहनत और लगन को देखकर थिएटर के मालिक ने कैंटीन में उन्हें भागीदार बना दिया। कैंटीन में चाय,चिप्स पॉपकॉर्न आदि बेचते थे।
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उन्होंने इसी समय एक बात नोटिस करी की जो चिप्स है वो सबसे ज्यादा बिकती थी। उन्होंने सोचा कि हम अगर बाहर से खरीदते हैं, उसके बदले अगर खुद बनाये तो प्रॉफिट बढ़ सकता है। चंदू भाई बिरानी ने खुद वेफर्स बनाना चालू किया और उसे मार्केट में रिटेलर्स को और अन्य जगहों पर भी बेचना शुरू किया। चंदू भाई ने अपनी कंपनी का नाम Bala Ji Wafers रखा।
उनके भाइयों ने भी उनका सपोर्ट किया। और सब एक ही बिज़नेस में जुट गए। शुरुआत में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि कई लोग इन चीजों में रिस्क लेना नहीं चाहते थे।
तो कई लोग बालाजी वेफर्स खरीदते तो थे, मगर पैसे चुकाने में बहुत देर करते थे, “मगर कहते है ना मेहनत वो सुनहरी चाबी है जो बंद भविष्य के दरवाजे भी खोल देती है” Bala Ji Wafersका स्वाद कितना बढ़िया था कि लोगों की जुबां और दिल में जगह लेने में समय नहीं लगा।
Bala ji Wafers की डिमांड दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी और उनका मुनाफा भी बढ़ने लगा और उनके जीवन का सबसे सुनहरा वक्त आने ही वाला था। लेकिन चंदुभाई ने जो वेफर्स बनाने वाला व्यक्ति रखा था उसने अचानक से आना बंद कर दिया और फिर चंदू भाई विरानी ने वेफर्स बनाने की कमान अपने हाथ में ले ली और खुद बनाने लगे। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया, जब वे शुरुआत में बेवर्स बनाते थे, कई बार वेफर्स जल भी जाते थे। साल 1982 से 1989 तक बहुत ही ज्यादा तेजी आ चुकी थी।
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मगर मुनाफा फिर भी कम था। Bala Ji Wafers में प्रतिवर्ष 2,00,000 रुपए की चिप्स की सेल हो रही थी। उसी समय बैंक से लोन लेकर राजकोट में 1000 वर्ग किलोमीटर का एक प्लॉट खरीदा गया और वहाँ आठ तबे लगा दिए। साथ ही स्टाफ को भी बढ़ा दिया गया। 1982 तक Bala Ji Wafers प्रतिवर्ष 3 करोड़ रुपए की वेफर्स सेल कर रही थी। लेकिन चंदू भाई इतने से संतुष्ट नहीं थे। वे बेहतर दाम और पैकेजिंग के साथ अच्छी क्वालिटी कस्टमर को देना चाहते थे।
जो तवा पर मुश्किल था इसलिए 1982 में उन्होंने ऑटोमैटिक वेफर्स मेकिंग प्लांट डाल दिए। इसके बाद भी उनके व्यापार में कई उतार चढ़ाव आए मगर चंदू भाई विरानी डटे रहे। फिर उन्होंने Bala Ji Wafers के लिए ट्रांसपैरेंट पैकेजिंग मशीन के बदले रंगीन पैकिंग की मशीन ली और मेहनत और लगन के साथ आज अपने बिज़नेस को 2200 करोड़ की कम्पनी में बदल दिया।
आज वे कई बड़ी-बड़ी कंपनी जैसे हल्दीराम, बिकानो को भी बेहद टक्कर दे रहे हैं। आज गुजरात में नमकीन का 90% मार्केट पर Bala Ji Wafers का राज़ है। वहीं मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और अन्य स्टेटस में 71% मार्केट पर Bala Ji Wafersका कब्जा है|